Education Story: गरीब बच्चों की जिंदगी बदल रही तरुणा, 2 हजार बच्चों को दी शिक्षा और भोजन

Education Story of Taruna Ghaziabad: ‘ना दौलत से, ना शोहरत से, ना बंगला-गाड़ी रखने से, मिलता है सुकून दिल को, किसी गरीब की मदद करने से…’ गाजियाबाद की तरुणा की कहानी भी ऐसी ही है, जो उन गरीब-मजदूर परिवारों की मदद कर रही है जो अपने बच्चों को शिक्षा देने में भी असहाय हैं. लेकिन आज तरुणा की वजह से उनके चेहरे पर सुकून है और उनके बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट. तरुणा, अपनी नौकरी के साथ-साथ बच्चों को पढ़ा रही हैं.

आइए जानते हैं कौन हैं तरुणा | Education Story of Taruna

तरुणा करती है बैंक मे सरकारी नौकरी
यह एक छोटी-सी कोशिश है उन बच्चों को पढ़ाने लिखाने की जिनके माता पिता मजदूरी करते हैं. उनके बच्चों को शिक्षा देने में सबसे बड़ी भूमिका रही है गाजियाबाद की तरुणा की, जोकि बैंक में एक सरकारी कर्मचारी हैं. उनका कहना है कि नौकरी करने के साथ ही यह तय कर लिया था कि ऐसे बच्चों तक शिक्षा जरूर पहुंचानी है जिनके लिए स्कूल पहुंचना आसान नहीं है.

नहीं आती थी ABCD
तरुणा बताती हैं कि इनमें कई बच्चे ऐसे हैं जिनकी उम्र ज़्यादा है लेकिन उन्हें ABCD भी नहीं आती. ऐसे में इन बच्चों का स्कूल में भी एडमिशन नहीं हो पाता. इसलिए हम पहले उन्हें यहां पढ़ाते हैं और फिर स्कूल में एडमिशन के लिए कोशिश करते हैं. तरुणा, इस पहल से अब तक दो हजार से ज्यादा बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा चुकी हैं. वे बताती हैं कि जब हम लोगों ने झुग्गी झोपड़ी में जाना शुरू किया तो बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. शुरू में जब हम लोग झुग्गियों में पहुंचे और महिलाओं से बात की तब महिलाएं बहुत ज़्यादा बात करने में इंटरेस्टेड नहीं होती थीं. कई महिलाएं तो कहती थी कि हां ठीक है जो सामान देना है दो और जाओ, ज्ञान मत दो. लेकिन जब एक बार बच्चों के पेरेंट्स हमारी मंशा को समझ गए तो उन सभी ने भी हमारा बहुत सहयोग किया.

Read This Also: Indian Railways: होली के त्योहार पर भारतीय रेलवे चलाएगा ये स्पेशल ट्रेनें, यूपी बिहार वालों की हुई बल्ले बल्ले

कूड़ा बीनते थे ये बच्चे
तरुणा कहती हैं कि मैं जिस घर से आती हूं मैंने कभी इस तरह से बच्चों को झुग्गियों में काम करते हुए या कूड़ा बिनते हुए नहीं देखा था. इनमें से अधिकतर बच्चे पहले कूड़ा बीनने का काम करते थे. उनका सिर्फ एक ही मकसद होता था कि नास्ता और खाने का इंतजाम हो जाए. नौकरी लगने के बाद जब मेरे सामने ऐसे बच्चे आए तो मुझे लगा कि इनके लिए कुछ तो करना चाहिए. इसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों की एक टीम बनाई और इस काम में लग गईं.

पढ़ाई के साथ भरपेट खाना दिया
वो ये जानती थीं कि बच्चों को किताब से पहले खाना चाहिए इसलिए सेंटर में खाने का इंतजाम भी किया गया. बच्चे हर रोज यहां रात का खाना खाकर ही जाते हैं. इस काम में मदद करने वाले तरुणा के कई साथी सरकारी कर्मचारी ही हैं और हर कोई अपने महीने की सैलरी से कम से कम 30-40 पर्सेंट इस काम में लगाते हैं.

पैसा नहीं, हम टाइम डोनेशन मांगते हैं
साल 2013 से तरुणा ये एक काम करना शुरू किया था. 2015 में तरुणा और उनके साथियों ने मिलकर निर्भेद नाम का एक NGO बनाया. तरुणा बताती हैं कि निर्भेद से कई सरकारी कर्मचारी और रिटायर्ड लोग जुड़े हुए हैं. बड़ी बात यह है कि ये NGO किसी से भी पैसे नहीं लेता है. तरुणा कहती हैं कि हम मदद तो लेते हैं लेकिन किसी से पैसे नहीं लेते हैं कई लोग इन बच्चों के लिए हर रोज़ खाने का इंतज़ाम करते हैं तो कोई बच्चों के लिए कॉपी किताब ड्रेस और स्टेशनरी का इंतज़ाम करते हैं. हर साल हम कई बच्चों का एडमिशन स्कूलों में करवाने की कोशिश करते हैं. उस वक़्त हमें थोड़े ज़्यादा पैसों की ज़रूरत होती है तो हम सब अपनी सैलरी का बड़ा हिस्सा इसी काम में लगा देते हैं. तरुणा कहती हैं कि हम लोगों से टाइम डोनेट करने के लिए कहते हैं अगर किसी के पास वक़्त है तो वो यहां आकर इन बच्चों को पढ़ाए यही हमारी सबसे गुज़ारिश होती है.

Leave a Comment

It’s Official: Hailey And Justin Bieber Are Going To Be Parents! 10 strongest animals in the wild 7 Essential Tips For Maintaining A Healthy And Balanced Diet 7 Underrated Amazon Prime Shows 8 Steps To Lose Weight At Home